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हरदोई में प्रशासनिक हलचल: किसान यूनियन स्वराज का दबाव, पत्रकार नेहा दीक्षित से मारपीट और DGP के आदेशों की अवहेलना—एक साथ कई मोर्चों पर घिरा पुलिस प्रशासन

हरदोई/लखनऊ। जनपद हरदोई में इन दिनों प्रशासन और पुलिस व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। एक ओर जहां भारतीय किसान यूनियन स्वराज लगातार तीन दिनों से आंदोलनात्मक दबाव बनाते हुए पुलिस महानिदेशक, लखनऊ को संबोधित ज्ञापन तीन तहसीलों में सौंप रही है, वहीं दूसरी ओर पत्रकार एवं भारतीय किसान यूनियन (स्वराज) की महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष नेहा दीक्षित के साथ हुई मारपीट का मामला अब राज्य स्तर तक तूल पकड़ चुका है

भारतीय किसान यूनियन स्वराज के पदाधिकारियों ने अपनी मांगों को लेकर शाहाबाद, हरदोई सदर और सवायजपुर तहसील में उपजिलाधिकारियों को ज्ञापन सौंपे। किसान नेताओं का कहना है कि यह अभियान लगातार जारी रहेगा और यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।

इसी बीच, 02 दिसंबर को बिलग्राम स्थित सीओ कार्यालय के बाहर** पत्रकार नेहा दीक्षित, उनके साथी राकेश कुमार और अन्य लोगों के साथ हुई मारपीट का मामला प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। आरोप है कि इसके बाद पीड़ितों को कोतवाली बिलग्राम ले जाकर करीब पाँच घंटे तक बैठाए रखा गया, जहां मारपीट व अभद्र व्यवहार किया गया। इस घटना में नेहा दीक्षित के दाएँ हाथ में फ्रैक्चर हो गया, जिसका इलाज अब भी जारी है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए पीड़ित पक्ष लखनऊ में पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश श्री सुजीत पांडे से मिला। डीजीपी ने तत्काल कार्रवाई के निर्देश देते हुए पाँच पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर करने का आदेश दिया। इनमें अजय गौतम (दरोगा), अभिषेक तोमर (SHO चालक), रजनीश यादव (दीवान), अभिषेक त्यागी (दीवान) और राहुल (सिपाही) शामिल हैं।

हालांकि, 05 दिसंबर को लाइन हाजिर किए जाने के आदेश के बावजूद 20 दिसंबर तक केवल दो पुलिसकर्मी ही लाइन में पाए गए , जबकि शेष तीन अब भी ड्यूटी पर कार्यरत बताए जा रहे हैं। पीड़ित पक्ष के अनुसार उनके पास इसके फोटो व अन्य सबूत मौजूद हैं। इतना ही नहीं, जिन दो पुलिसकर्मियों को लाइन में बताया गया, उन्हें भी बाद में शहर कोतवाली में तैनात कर दिया गया, जिससे कार्रवाई की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि लाइन हाजिरी जैसे गंभीर मामले में अब तक कोई आधिकारिक प्रेस नोट जारी नहीं किया गया, जिससे डीजीपी के आदेशों की अवहेलना और स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका पर संदेह और गहरा गया है।

पूरा मामला अब केवल एक घटना नहीं, बल्कि किसान आंदोलन, महिला सुरक्षा, पत्रकारों की स्वतंत्रता और पुलिस जवाबदेही से जुड़ा बड़ा मुद्दा बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि राज्य सरकार और पुलिस मुख्यालय इस पर क्या ठोस कदम उठाते हैं।

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